शिवसेना को पांच साल के लिए मुख्यमंत्री पद देकर राकांपा ने सबसे ज्यादा मंत्री पद हासिल किए हैं। शरद पवार ने अपनी इस भूमिका को भास्कर से बातचीत के दौरान पहले ही स्पष्ट कर दिया था। कांग्रेस के साथ गठबंधन होते हुए भी पवार ने कभी भी मुख्यमंत्री पद की जिद नहीं की थी। एक बार तो राकांपा की सीटें कांग्रेस से ज्यादा भी रही, तब भी पवार ने मुख्यमंत्री पद पर दावा पेश नहीं किया। 2004 के विधानसभा चुनाव में राकांपा ने 71 और कांग्रेस ने 69 सीटें जीतीं। इसके बावजूद विलासराव देशमुख मुख्यमंत्री बने और राकांपा के आरआर पाटिल को उप-मुख्यमंत्री बनाया गया।
शिवसेना सबसे बड़ी पार्टी, लेकिन मंत्री राकांपा के ज्यादा
एक मुख्यमंत्री पद के बदले में यदि मंत्रियों की संख्या ज्यादा आ रही हो तो पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए वह ज्यादा जरूरी है। यह राकांपा की नीति ही बन चुकी है। इसी वजह से शिवसेना के सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी सबसे ज्यादा मंत्री राकांपा के ही हैं। गठबंधन में राकांपा के 54, शिवसेना के 56 और कांग्रेस के 44 विधायक हैं। मंत्रिमंडल में अब 43 मंत्री हैं। इनमें राकांपा के 16 और कांग्रेस-शिवसेना के 12-12 मंत्री हैं।
अल्पसंख्यकों को मौका
महत्वपूर्ण बात यह है कि इस मंत्रिमंडल में अल्पसंख्यक समुदाय को अच्छी जगह मिली है। चार मुस्लिम, दो बौद्ध और एक जैन मंत्री नई सरकार में है। इससे पहले वाली सरकार में एक भी मुस्लिम मंत्री नहीं था। ठाकरे सरकार में अन्य संतुलन भी साधने की पूरी कोशिश की गई है। इसके बाद भी महिला और आदिवासियों के मामले में कमी रह गई है।
राकांपा का दबदबा
इस सरकार पर राकांपा का दबदबा साफ नजर आता है। अजित पवार को उपमुख्यमंत्री पद से नवाजा गया है, ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि ठाकरे और पवार के रिश्तों का भविष्य क्या होगा। सेना के उद्धव ठाकरे और कांग्रेस के बालासाहेब थोरात दोनों का ही व्यक्तित्व सौम्य है। लेकिन अजित पवार वैसे नहीं हैं। इस वजह से सरकार के भविष्य के लिए यह मुद्दा निर्णायक रहने वाला है। सरकार का रिमोट शरद पवार के हाथ में ही होगा, यह साफ दिख भी रहा हो, तब भी वह अजित पवार पर काम करेगा या नहीं, यह ब